दास को पास ही
( तर्ज : चाँद जाने जाने कहाँ खोगया ... )
दास को पास ही धर लिया ।
जबके ऐसा ही
दर - दर भ्रमाना न था । टेक ॥
दुनिया छोडी औ ,
जंगल में रहने लगा ।
बेलपत्ती और फल - फूल खाने लगा ।
फिर भी मन पर न ताबा भया ।
ऐसे बन बन में जबतो
घुमाना न था ! ||१||
साधनों- आसनों में भी डाली नजर
नेति औ ' धोती - बस्ती
की ले ली खबर ।
इससे तन पुष्ट ही हो गया ।
ये घमंड हम में
योगी का लाना न था ॥ २ ॥
भाव भक्तीसे हम तो पुजारी बने ।
माल फेरी , गजब ब्रह्मचारी बने ।
मैं अकेला रहा ना अपना
सेवक ही तुमने बनाना न था ! ॥३।।
हमने माना कि
तुमही हो वाली पुरे ।
जो सिखाओ खुशी है ये मनको मेरे ॥
काहेको इतनी देरी किया ।
पहले कहना था ,
जबके निभाना न था ! ॥४ ॥
आखिरी की ये लाया हूँ ,
दरख्वास्त में ।
दास तुकड्या रखो चरण के पास में ॥
हूँ मैं बिगडा , बनाओ नया ।
ब्रीद भगवान तुमने
सुनाना न था ! ॥५ ।।
सेवाश्रम - आमगाँव ;
दि . १६ - ९ -६२
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